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उत्तरी पूर्वी उत्तर प्रदेश की सर्वाधिक चर्चित एवं विख्यात धान की स्थानीय किसानों की किस्म कालानमक विगत तीन हजार वर्षा से खेती में प्रचलित रही है. सुधरी प्रजातियों अनुपलब्धता के कारण मूलतः स्वाद और सुगन्ध में किसानों की यह धान की किस्म विलुप्त होने के कगार पर थी. इसकी खेती का क्षेत्रफल 50 हजार से घटकर 2 हजार पर आ गया था और पूरा अन्देशा था कि धान की यह दुर्लभ किस्म हमेशा के लिए विलुप्त हो जायेगी. किसानों और उपभोक्ता को कालानमक धान की पहली प्रजाति केएन3 2010 में मिली जिसमें स्वाद और सुगन्ध दोनो ही पाये गये. इसके पश्चात् पहली बौनी प्रजाति बौना कालानमक 101 भारत सरकार द्वारा 2016 में और बौना कालानमक 2017 में अधिसूचना किया गया. दोनों प्रजातियों में उपज 40 से 45 कुन्टल थी फिर भी दाने के गुण में कमी के कारण किसान और उपभोक्ता दोनो पूर्ण रूप से सन्तुष्ट नही थे. इन्ही कमियों को दूर करके 2019 में पीआरडीएफ संस्था ने कालानमक किरण नामक प्रजाति भारत सरकार से विमोचित कराई. प्रस्तुत लेख में कालामक किरण के विषय में विस्तृत जानकारी दी गई है.

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कालानमक किरण का उद्भव एवं विकास

कालानमक केएन3 और स्वर्णा सब1 के संकरण से एक प्रजनक लाइन पीआरडीएफ-2&14&10&1&1 विकसित की गई. लगातार 3 वर्षो तक 2013 से 2016 तक इसका परीक्षण कृषि विभाग के सम्भागीय कृषि परीक्षण एवं प्रदर्शन केन्द्रों पर कराया गया. यह पाया गया कि इस प्रजनक लाइन की उपज केएन3 की तुलना में 25 से 30 प्रतिशत अधिक रही है. उत्तर प्रदेश कृषि विभाग तथा अखिल भारतीय धान उन्नयन योजना के अन्तर्गत अनेक केन्द्रों पर परीक्षित की गई.

आकारिक गुण एवं विशेषताए

लगभग 95 सेमी चाई तथा 35 सेमी लम्बी बालियों वाली यह प्रजाति प्रकाश अवध की संवेदी है. अर्थात् इसकी बाली 20 अक्टूबर के आस-पास ही निकलती है. भारत सरकार के केन्द्रिय प्रजाति विमोचन की 82 मीटिंग में इसको अगस्त 2019 में अधिसूचनांकित की गई थी. इसके 1000 दाने का वनज 15 ग्राम तथा दाना मध्यम पतला होता है.  छोटे दाने वाली धान की यह प्रजाति अत्यधिक सुगन्धित तथा अत्यधिक साबुत चावल देती है.  इसकी कुछ खास बाते है जो अन्य प्रजातियों मे इसको सर्वौत्तम बनाती है वो है इसका लोहा और जस्ता की मात्रा, प्रोटीन का प्रतिशत (10.4) और निम्न ग्लाईसिमीक इंडेक्स (53.1). ग्लाईसिमीक इंडेक्स कम होने के कारण इसको मधुमेह रोगी भी इसको खा सकते है. इसमें एमाइलोज कम (20 प्रतिशत) होता है अतः पकाने पर इसका भात हमेशा मुलायम और स्वादिष्ट रहता है.

खेती की विधि

कालानमक किरण एक प्रकाश अवध संवेदी प्रजाति है. इसमें बालिया 20 अक्टूबर के आस-पास निकलती है तथा 25 नवम्बर के आस -पास यह कटाई के लिए तैयार होती है. अतः इसकी बुवाई का उचित समय जून का अन्तिम पखवारा (15 से 30 जून) के बीच ही है. एक हैक्टेयर में खेती के लिए 30 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है. जुलाई पहले सप्ताह के बाद बुवाई करने से इसकी पैदावार कम हो जाती है, लेकिन 15 जून से पहले बुवाई करने पर इसकी पैदावार में कोई बढ़ोत्तरी नही होती. 

रोपाई की विधि

जब पौध 20 से 30 दिन की हो जाये तो इसे उखाड़ कर 20 सेमी कतार से कतार और 15 सेमी पौधे से पौधे की दूरी पर रोपाई कर दी जाये. एक स्थान पर 2 से 3 पौध ही लगावे.

खाद की मात्रा

कालानमक की बौनी प्रजातियों में 120 ग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 60 किलोग्राम पोटास की आवश्यक्ता होती है. फासफोरस एवं पोटास की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा रोपाई से पहले मिलाकर खेत में ड़ाल दी जाती है.  रोपाई के एक महीने बाद खर पतवार नियन्त्रण के बाद बची हुई 60 किलोग्राम नत्रजन की मात्रा ऊपर से छिड़काव करके ड़ाल दी जा सकती है.

फसल प्रबन्धन

यदि जस्तें की कमी के लक्षण दिखाई पड़े तो 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 2.5 किलोग्राम चूने को 500 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़क दे. खरपतवार नियन्त्रण के लिए रोपाई के एक माह के अन्दर खुरपी से उगे हुए  खरपतवारों को निकाल दे इसके पश्चात् यदि 2 -3 सेमी पानी भरा रहे तो आगे निराई की आवश्यकता नही पड़ती.  रोपाई के समय खेत तैयार करते समय जो कुछ भी खरपतवार उगे रहते है वे स्वयं ही नष्ट हो जाते है. यदि रासायनिक खरपतवारनाशी का प्रयोग करना पड़े तो रोपाई के 15 से 20 दिन के बाद उसे ड़ाल सकते है.  

कालानमक किरण में प्रमुख कीटों और बीमारियों से रोधिता पायी जाती है. अतः उनके लिए किसी भी रासायनिक दवाओं का उपयोग नही करना पड़ता किन्तु गन्धी कीट सीथ ब्लाइट व पर्ण गलन रोग के लिए दवाओं का उपयोग करना पड़ता है. गन्धी कीट का उपचार बीएचसी का बूरकाव करके किया जा सकता है. पर्ण गलन रोग के उपचार के लिए 0.2 प्रतिशत हैक्साकोनाजोल अथवा 1 लीटर प्रोपीकोनाजोल 25 ईसी का छिड़काव करके किया जा सकता है. सुगन्धित होने के करण इसमें तनाछेदक कीट का भी प्रकोप होता है कार्टाप हाइड्रेक्लोराइड 18 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर खेत में  5 से 6 दिन तक 3 से 4 सेमी पानी बनाये रखे.    

रासायनिक खरपतवारनाशी जैसे: ब्यूटाक्लोर 2.5 लीटर प्रति हैक्टेयर, अनिलोफास 1.5 लीटर प्रति हैक्टेयर अथवा नोमिनी गोल्ड 250 एमएल प्रति हैक्टेयर अच्छे खरपतवारनाशी है. इनका उपयोग इन पर लिखे हुए अनुशंसा के अनुरूप कर सकते है.

कालानमक किरण की जैविक खेती

यदि कालानमक किरण का उत्पादन जैविक विधि से करना है तो पहले से तैयार जैविक खेत का ही प्रयोग करें.  बीजोपचार के लिए ट्राइकोडर्मा से बीज शोधित कर ले.  रोपाई करते समय या रोपाई करने से पहले सूडोमोनास के दो प्रतिशत घोल में पौध की जड़े डुबाने के पश्चात् रोपाई करें. 5 टन प्रति हैटेयर गोबर की सड़ी खाद या मुर्गी की खाद डाले. सर्वोत्तम है कि रोपाई के 40 दिन पहले 40 किलोंग्राम ढ़ैचा (सिसबानिया)/हैक्टेयर का बीज मुख्य खेत में बोये. जब पौधे 35 से 40 दिन के हो जाये तो उसको खेत में पलटकर पानी भरकर सड़ा दे. इस हरी खाद के पलटने के एक सप्ताह के अन्दर रोपाई कर सकते है. इसके अतिरिक्त कई और उपादान (पीएसबी, हर्बोजाइम, बीजीए, प्रोम, वर्मीकम्पोस्ट इत्यादि) उपलब्ध है जिनका उपयोग करके पोषक तत्वों की उपलब्धता की जा सकती है.  कीड़े तथा बिमारियों की नियन्त्रण (अमृतपानी, नीमोलीन, नीम आधारित अनेक उत्पाद, जीवामृत आदि) के लिए बाजार में उपलब्ध है.   

फसल की कटाई व मड़़ाई

चूंकि कालानमक की भूसी का रंग काला होता है अतः इसकी कटाई का समय निधार्रित करना थोड़ा कठिन होता है. सामान्यतया 50 प्रतिशत बाली निकलने के 30 दिन बाद धान की फसल कटाई के लिए तैयार होती है किन्तु कालानमक किरण को 40 से 45 दिन लगते है.  फसल कटाई के बाद, यदि कम्बाइन हार्वेस्टर का उपयोग नही किया जा रहा है तो 3 दिन के अन्दर ही पिटाई करके दाने पौधों से अलग कर लिए जाये और उसको 3 से 4 दिन धूप में अच्छी तरह सुखाकर भण्डारण कर ले.

पैदावार

कालानमक की औसत पैदावार 45 से 50 कुन्तल होती है. जैविक खेती जिसमें की हरी खाद के साथ-साथ ट्राईकोडर्मा तथा सोडोमान का प्रयोग किया गया हो कि पैदावार 50 से 55 कुन्तल तक हो सकती है. वर्तमान में इस समूह की प्रचलित प्रजातियों से यह ऊपज 27 प्रतिशत से अधिक है.

भण्डारण एवं कुटाई

धान सुखाने (14% नमी) के बाद प्लास्टिक की बोरियों अथवा टिन की बनी बुखारी में इसका भण्डारण चावल के रूप में न करके धान के रूप में करे जिससे इसकी सुगन्ध एवं पाक गुण ठीक रहते है. कुटाई के लिए अच्छी मशीनों का उपयोग करने से चावल कम टूटता है.

कालानमक किरण के दाने व पाक गुण:

कालानमक किरण अतिसुगन्धित अधिक प्रोटीन 10.4%, कम ग्लाइसिमिक इंडेक्स सर्करा विहीन और 20% एमाईलोज (चावल पकाने के बाद ठण्डा होने पर भी मुलायम) होता है. 53.1% ग्लाइसिमिक इंडेक्स के कारण मधुमेह के रोगी इसको बेझिझक खा सकते है.

तिगुनी आमदनी

कालानमक किरण के धान का औसत विक्रय मूल्य 3500 से 4000 रूपया प्रति कुन्तल होता है जोकि सामान्य धान से 3 से 4 गुना है. इससे शुद्ध लाभ रूपया 101250 प्रति हैक्टेयर पाया गया है. इसकी जैविक खेती से उत्पादन में शुद्ध लाभ 127500 होता है जोकि सामान्य धान से 3 गुना से भी अधिक है. 

बीज की उपलब्धता

कालानमक किरण का बीज पीआरडीएफ संस्था के मुख्यालय के उपरोक्त पते तथा पीआरडीएफ बीज के विधायन संयन्त्र डी-41, इंडस्ट्रीयल एरिया, खलीलाबाद, जिला संत कबीर नगर मो0 नम्बर 9415173984 से प्राप्त किया जा सकता है.

लेखक :
 डॉ. राम चेत चौधरी, अंजली साहनी, शिव बदन मिश्र एवं रविन्द्र कुमार
पीआरडीएफ, 59 कैनाल रोड़, शिवपुर सहबाजगंज, गोरखपुर, 273014

खरीदने के लिए संपर्क करें – https://kisanjeevan.com/product/kala-namak-kiran-paddy-seeds/
mobile – 6386288356

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